Encyclopaedia of Upanisadic Philosophy (In 3 Volumes)
Vol.1: A-Ja (ISBN: 9788177024661); Vol.2: Ta-Ya (ISBN: 9788177024678); Vol.3: R-Jna (ISBN: 9788177024685).
विगत 125 वर्षों में उपनिषदों पर दर्जनों उत्कृष्ट ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं किंतु उन पर अब तक केवल दो ही महाकोश देखने में आए हैं। एक तो कर्नल जी.ए. जेकब (1891) का और दूसरा पं० गजानन शंभु साधले (1940) का। डॉ० वेदवती वैदिक द्वारा रचित यह महाकोश उस महान परम्परा को आगे बढ़ाता है। उक्त दोनों महाकोशों से यह महाकोश इस रूप में भिन्न है कि यह बहुभाषी है। इसमें मूल मंत्र संस्कृत में हैं। उनका अनुवाद पहले हिंदी में और फिर अंग्रेजी में दिया गया है। बीच में मूल मंत्र का रोमन लिप्यंतरण भी है। उक्त में दोनों महाकोशों में उपनिषदों के शब्दों और वाक्यों के संदर्भ-स्रोत सरलता से खोजे जा सकते हैं किंतु इस महाकोश में मंत्रों के अक्षरों और शब्दों की बजाय उनके अर्थों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इसीलिए यह उपनिषदों का अक्षर-कोश या शब्द कोश या वाक्यकोश होने की बजाय उनका अर्थ-कोश या तत्व-ज्ञान कोश अधिक है। इसीलिए यह महाकोश अपूर्व बन गया है।
डॉ० वेदवती वैदिक ने इस महाग्रंथ को तैयार करते समय इस बात का ध्यान रखा है कि यह केवल संदर्भ-स्रोत बनकर न रह जाए अपितु यह उपनिषदों की दार्शनिक और आध्यात्मिक मान्यताओं को प्रामाणिक रूप में प्रस्तुत कर सके। इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि इस ग्रंथ को संस्कृत के पंडित और शोधकर्त्ता तो अपने लिए उपयोगी पाएंगे ही, यह ग्रंथ दर्शन और अध्यात्म में रुचि रखनेवाले सामान्यजन के लिए भी पठनीय और प्रेरणादायक होगा। इसकी पहुंच देश और विदेश में एक जैसी होगी।
औपनिषदिक साहित्य के क्षेत्र में इस उपनिषद् तत्वज्ञान महाकोषः का महत्व एतिहासिक है। कई दशकों के गहन अध्ययन और शोध के आधार पर रचित यह महाग्रंथ बालगंगाधर तिलक, डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन, आर. डी. रानाडे, पं० साधले और कर्नल जी.ए. जेकब, पाल डायसन मेक्समूलर, ए. बी. कीथ आदि की महान परंपरा में अपने ढंग की अनुपम कृति है। उपनिषदों को आत्मसात कर तत्संबंधी अनेक ग्रंथों का प्रणयन करने वाली डॉ. श्रीमती वेदवती वैदिक की उपनिषद् जगत को यह अन्तिम और अप्रतिम भेंट है।
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